शायरी

गोरख पाण्डेय की कविता-दंगा

गोरख पाण्डेय की कविता-दंगा

Kavi-Gorakh Pandey

आओ भाई बेचू आओ
आओ भाई अशरफ आओ
मिल-जुल करके छुरा चलाओ
मालिक रोजगार देता है
पेट काट-काट कर छुरा मँगाओ
फिर मालिक की दुआ मनाओ
अपना-अपना धरम बचाओ
मिलजुल करके छुरा चलाओ
आपस में कटकर मर जाओ
छुरा चलाओ धरम बचाओ
आओ भाई आओ आओ

छुरा भोंककर चिल्लाये ..
हर हर शंकर
छुरा भोंककर चिल्लाये ..
अल्लाहो अकबर
शोर खत्म होने पर
जो कुछ बच रहा
वह था छुरा
और बहता लोहू…
 

इस बार दंगा बहुत बड़ा था
खूब हुई थी
ख़ून की बारिश
अगले साल अच्छी होगी
फसल मतदान की

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