“इब्राहीम ट्राओरे: एक नौजवान नेता, जो अफ़्रीका की आत्मा को जगा रहा है”
क्या आपने कभी किसी ऐसे नेता के बारे में सुना है जो सिर्फ़ 34 साल की उम्र में राष्ट्रपति बन गया हो?
जिसने सत्ता में आते ही दुनिया की सबसे बड़ी सच्चाई पर सवाल उठाए हों?
जिसने अफ़्रीका की मिट्टी, उसके संसाधनों, और उसकी आत्मा के लिए आवाज़ उठाई हो?
जी हाँ, हम बात कर रहे हैं इब्राहीम ट्राओरे की — बुर्किना फासो के सबसे युवा राष्ट्रपति की।
एक क्रांतिकारी सोच का युवा, जो अब एक पूरे महाद्वीप की उम्मीद बन चुका है।
कौन हैं इब्राहीम ट्राओरे?

इब्राहीम ट्राओरे एक मिलिट्री कैप्टन थे।
2022 में, जब बुर्किना फासो लगातार आतंकी हमलों, भ्रष्टाचार और राजनीतिक अस्थिरता से जूझ रहा था —
तब ट्राओरे ने एक सैन्य विद्रोह के ज़रिए सत्ता अपने हाथ में ली।
लेकिन उनकी बगावत सिर्फ़ कुर्सी के लिए नहीं थी —
वो एक विचार था।
एक संघर्ष था — असली आज़ादी के लिए।
और अब सुनिए उनका वो ऐतिहासिक भाषण…

इब्राहीम कहते हैं:
“मैं 34 साल का हूँ।
मैंने अपनी ज़िंदगी के हर दिन तुम्हारे झूठों में बिताए…
बचपन में टीवी पर अफ़्रीका देखा करता था —
भूखा, गरीब, गंदा, युद्ध में डूबा हुआ…
और हमें यही बताया गया कि यही है हमारा अफ़्रीका।”
लेकिन फिर वो बड़े हुए,
उन्होंने पढ़ा, सोचा, सवाल किए —
और उन्हें समझ आया कि जो अफ़्रीका दुनिया को दिखाया गया,
वो असल अफ़्रीका नहीं है।
बल्कि वो एक “स्क्रिप्ट” है —
जिसे कुछ ताक़तवर देशों ने लिखा, ताकि अफ़्रीका को हमेशा छोटा और निर्भर रखा जा सके।
असलियत क्या है?

अफ़्रीका के पास है:
दुनिया का 70% कोबाल्ट – मोबाइल, लैपटॉप, इलेक्ट्रिक कार सब इससे चलते हैं।
90% प्लैटिनम, 65% हीरे, 30% सोना, 35% यूरेनियम…
लेकिन फिर भी अफ़्रीका गरीब है।
कांगो से कोबाल्ट जाता है, पर लोग मोबाइल नहीं खरीद सकते।
साउथ अफ़्रीका प्लैटिनम देता है, पर वहाँ बेरोज़गारी है।
माली और बुर्किना फासो से सोना बहता है,
लेकिन बच्चे स्कूल तक नहीं पहुँचते…
ट्राओरे पूछते हैं:
“अगर अफ़्रीका इतना अमीर है, तो गरीब क्यों है?”
क्योंकि उपनिवेशवाद आज भी ज़िंदा है…
बस उसने अपना रूप बदल लिया है:
पहले जबरन कब्ज़ा होता था, अब कॉर्पोरेट डील्स होती हैं।
पहले सैनिक भेजे जाते थे, अब कर्ज़ दिया जाता है।
पहले लाठी होती थी, अब मीडिया का माइक्रोफोन है।
Glenore, Rio Tinto, Total Energies, Anglo American —
ये विदेशी कंपनियाँ अफ़्रीका से अरबों डॉलर कमा रही हैं,
लेकिन अफ़्रीका को क्या मिला?
प्रदूषण, गरीबी, और लूट।
इब्राहीम ट्राओरे का संदेश है सीधा:
> “अब बहुत हुआ।
अफ़्रीका मदद पाने वाला नहीं है,
वो दुनिया को सबसे ज़्यादा देता है —
फिर भी सबसे पीछे क्यों रखा गया?”
“अब वक्त है —
हम अपने लोगों, अपनी मिट्टी और अपने हक़ के लिए खड़े हों।
क्योंकि अगर हम नहीं जागे,
तो हमारी आने वाली नस्लें भी इस लूट की शिकार रहेंगी।”