KUNDERKI: तारीख़ी है कुन्दरकी की कर्बला बिना सर के घुड़सवार लड़े थे अंग्रेज़ो से
कुंदरकी- एक प्राचीन और ऐतिहासिक बस्ती है साथ ही कुंदरकी बस्ती हमेशा से ही इल्मो अदब का गहवारा रही है हर दौर में अदीब शायर और माहिरे कलम इस सरजमी पर गुजरे हैं आज भी कुंदरकी के नौजवान कुंदरकी की नुमाइंदगी कर रहे हैं और इस बस्ती का नाम देश ही नहीं वल्कि विदेशों तक में रोशन कर रहे हैं ।
कुंदरकी बस्ती पुरानी यादें भी समेटे हुए हैं जैसा कि ऊपर उल्लेख किया जा चुका है की कुंदरकी एक प्राचीन और ऐतिहासिक बस्ती है इसी तरह से कुंदरकी की ऐतिहासिक करबला भी है ।
तारीख़ी है कुन्दरकी की कर्बला बिना सर के घुड़सवार लड़े थे अंग्रेज़ो से
कुन्दरकी की ऐतिहासिक कर्बला पर होने वाले खास़ मोजज़े को उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से प्रकाशित उर्दू वीकली में लेखक सरफराज ने मार्च सन 1969 में खुसूसी सुमारे मोहर्रम के पेज नम्बर 74 पर कुछ इस तरह से तहरीर किया कि 1857 में देश में अंग्रेजो के खिलाफ़ शुरू किए गए भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान मुरादाबाद जनपद में भी अंग्रेजों ने लूटमार शुरू कर दी थी ।
मई 1857 में अंग्रेजों ने कुंदरकी बस्ती पर भी धावा बोलकर लूटपाट करने की योजना बना ली इसकी खबर मिलते ही पूरे कुंदरकी बस्ती में कोहराम मच गया नगर के सभी लोगों ने एकजुट होकर अंग्रेजों से मुकाबला करने की तैयारी कर ली ।
सय्यदों ने अपनी महिलाओं को एक बड़े मकान में जमा कर दिया वहां पर मिट्टी के बड़े मटके में तेल भरकर रख दिया और चार आदमी तैनात कर दिए सभी लोग अंग्रेजों से मुकाबला करने के लिए बस्ती से बाहर आकर बैठ गए सय्यदो ने यह हुकुम दे दिया था कि अगर अंग्रेज हमें मारकर बस्ती में घुस आए तो तेल छिड़क कर औरतों में आग लगा देना ताकि उनकी इज्जत बच सके औरतो ने आंखों के सामने मौत मंडराती देख कर या हुसैन या अब्बास कर के अल्लाह से दुआ मांगना शुरू कर दी उधर अंग्रेज़ी फौज भी कुंदरकी के करीब आ पहुंची मगर अंग्रेजों ने देखा कि हरे कपड़े पहने कुछ लोग घोड़े पर सवार है उनके हाथों में तलवार हैं, मगर किसी भी सवार के जिस्म पर सिर नहीं है यह मंजर देख कर अंग्रेजों के पैर उखड़ गए और वह बगैर जंग किये वापस लौट गए ।
अंग्रेजों के लौट जाने की खबर सुनते ही औरतो ने अल्लाह का शुक्र अदा किया
अंग्रेजों की तरह उन सभी लोगों ने देखा था इसलिए सभी के दिलों में यह एहसास पैदा हो गया कि कर्बला के शहीद हमारी मदद के लिए आए थे फिर क्या था जिस जगह सवारों को खड़ा देखा वहां बस्ती के सभी मर्द औरतें जमा हो गए उस जगह पर खुशबू महकी हुई थी तथा घोड़ों के पैरों के निशान भी मौजूद थे उस जगह को कर्बला के नाम मंसूब कर दिया गया जो आज भी एतिहासिक कर्बला मौजूद है और मोहर्रम और चेहल्लुम पर हर वर्ष ताजिए दफन किए जाते हैं उपरोक्त वाक्ये का जिक्र कुंदरकी के उस्ताद लेखक और वरिष्ठ पत्रकार केसर रिज़वी ने 2005 में कुंदरकी की कर्बला 2013 में कुंदरकी की अजादारी मोहर्रम नामा 2017 में और अहवाल सादात कुंदरकी 2018 में भी प्रकाशित किया है.!
कुंदरकी की ऐतिहासिक कर्बला हजरत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम से अकीदत रखने वाले लोगों की आस्था का मरकज बनी हुई है यहां पर प्रतिदिन ही और ख़ास तौर पर मोहर्रम-चेहल्लुम सबेरात और प्रत्येक बृहस्पतिवार को कर्बला पर रोशनी करने वालो मन्नत मांगने वाले पुरुषों – महिलाओं और बच्चों का तांता लगा रहता है दस मोहर्रम और बीस सफर को बस्ती व आसपास के ग्रामों के ताजिए भी इसी ऐतिहासिक कर्बला में दफन किए जाते हैं और हजारो लोग और महिलाये ऐतिहासिक कर्बला पर दुआ मांग कर फेज़ हासिल करते हैं ।
रिपोर्ट क्रेडिट- मौहम्मद कासिम सैफ़ी