Fact Story-Brigadier Mohammad Usman यादें ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान की-Bharat Ke Mahaveer
Fact Story-Brigadier Mohammad Usman यादें ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान की-Bharat Ke Mahaveer
आज भारतीय सेना की गौरवशाली परंपरा की बेहद मज़बूत कड़ियों में एक ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान का शहादत दिवस है। दुर्भाग्य यह है कि उनकी कुर्बानियों को देश अब लगभग विस्मृत कर चुका है। उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जनपद के बीबीपुर में जन्मे उस्मान भारतीय सैन्य अधिकारियों के उस शुरुआती बैच में शामिल थे, जिनका प्रशिक्षण ब्रिटेन में हुआ। द्वितीय विश्व युद्ध में अपने नेतृत्व के लिए प्रशंसा और कई बार प्रोन्नति हासिल करने वाले ब्रिगेडियर उस्मान साल 1947 में भारत-पाक युद्ध के वक़्त उस 50 पैरा ब्रिगेड के कमांडर थे, जिसने नौशेरा में ऐतिहासिक जीत हासिल की थी। उन्हें ‘नौशेरा का शेर’ कहा जाता है।

देश के बंटवारे के बाद अपनी बहादुरी और कुशल रणनीति के लिए चर्चित उस्मान को पाकिस्तानी राजनेताओं नेताओं मोहम्मद अली जिन्ना और लियाकत अली खान ने इस्लाम की दुहाई देकर सेना का चीफ बनाने का लालच देकर पाकिस्तानी सेना में शामिल होने का निमंत्रण दिया था। वतनपरस्त उस्मान ने प्रस्ताव ठुकरा दिया। बंटवारे के बाद उनका बलूच रेजीमेंट पाकिस्तानी सेना के हिस्से में चला गया और वे स्वयं डोगरा रेजीमेंट में आ गये। तब दोनों देशों में अघोषित लड़ाई में पाकिस्तान भारत में लगातार घुसपैठ करा रहा था। पैराशूट ब्रिगेड की कमान संभाल रहे उस्मान सामरिक महत्व के क्षेत्र झनगड़ में तैनात थे। 25 दिसंबर ,1947 को पाकिस्तानी सेना ने झनगड़ को कब्जे में ले लिया था। तब के वेस्टर्न आर्मी कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल के.एम करिअप्पा ने झनगड़ और पुंछ पर कब्ज़े के उद्धेश्य से जम्मू को अपनी कमान का हेडक्वार्टर बनाया। मार्च, 1948 में ब्रिगेडियर उस्मान के नेतृत्व-कौशल और पराक्रम से झनगड़ भारत के कब्जे में आ गया। झनगड़ के इस अभियान में पाक की सेना के हजार जवान मरे थे और लगभग इतने ही घायल हुए थे। झनगड़ के छिन जाने और बड़ी संख्या में अपने सैनिकों के मारे जाने से परेशान और खस्ताहाल पाकिस्तानी सेना ने उस्मान का सिर कलम कर लाने वाले को 50 हजार रुपये का इनाम देने का ऐलान किया था। 3 जुलाई ,1948 की शाम उस्मान जैसे ही अपने टेंट से बाहर निकले, पाक सेना ने उनपर 25 पाउंड का गोला दाग दिया जिससे उनकी शहादत हो गई। मरने के पहले उनके अंतिम शब्द थे – ‘हम तो जा रहे हैं, पर जमीन के एक भी टुकड़े पर दुश्मन का कब्जा न हो पाए।’
शहादत के बाद राजकीय सम्मान के साथ ब्रिगेडियर उस्मान को जामिया मिलिया इसलामिया क़ब्रगाह, नयी दिल्ली में दफनाया गया।उनकी अंतिम यात्रा में देश के तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड माउंटबेटन, प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, केंद्रीय मंत्री मौलाना अबुल कलाम आज़ाद और शेख अब्दुल्ला शामिल थे। किसी फौजी के लिए आज़ाद भारत का यह सबसे बड़ा सम्मान था। यह सम्मान उनके बाद किसी भारतीय फौजी को नहीं मिला। मरणोपरांत उन्हें ‘महावीर चक्र’ से सम्मानित किया गया। अपने फौजी जीवन में बेहद कड़क माने जाने वाले उस्मान अपने व्यक्तिगत जीवन में बेहद मानवीय और उदार थे। उन्होंने शादी नहीं की और अपने वेतन का अधिकाँश हिस्सा गरीब बच्चों की पढ़ाई और जरूरतमंदों पर खर्च करते थे। वे नौशेरा में अनाथ पाए गए 158 बच्चों की अपनी संतानों की तरह देखभाल करते और उनको पढ़ाते-लिखाते थे।
शहादत दिवस पर ‘नौशेरा के शेर’ ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान को खिराज-ए-अक़ीदत !
