Factum:- Godi Media ki sharmnak Reporting, Pakistani GolaBari Me Mare bharat K shikshak ko Bataya Pak Atanki
“गोदी मीडिया की नीचता बेनकाब: शहीद शिक्षक को बताया आतंकवादी, कश्मीर के पुंछ में पाकिस्तान की गोलाबारी में हुई मौत”
पुंछ से शर्मनाक रिपोर्टिंग की कहानी: जब एक शिक्षक को ‘आतंकी’ बना दिया गया
जम्मू-कश्मीर, पुंछ — पाकिस्तान की ओर से 7 मई को हुई भीषण गोलाबारी में पुंछ जिले के बैला गांव निवासी और जामिया जिया उल उलूम के शिक्षक कारी मोहम्मद इकबाल की मौत हो गई। इस हृदयविदारक घटना पर जहां स्थानीय लोग शोक मना रहे हैं, वहीं कुछ मीडिया संस्थानों ने सारी मर्यादाएं तोड़ते हुए इस निर्दोष शिक्षक को “आतंकवादी” करार दे दिया।
शिक्षक नहीं, शहीद थे कारी इकबाल
कारी मोहम्मद इकबाल एक प्रतिष्ठित इस्लामी शिक्षण संस्थान में बच्चों को तालीम देते थे। वे न तो किसी राजनीतिक संगठन से जुड़े थे, न ही किसी आपराधिक रिकॉर्ड के तहत चिन्हित थे। फिर भी, उनकी दाढ़ी और टोपी को देखकर कुछ चैनलों ने उन्हें आतंकवादी घोषित कर दिया — बिना किसी जांच या पुष्टि के।

क्या अब दाढ़ी-टोपी भी गुनाह है?
मीडिया का एक वर्ग अब खुलेआम धार्मिक और सांस्कृतिक प्रतीकों को निशाना बना रहा है। सिर्फ इसलिए कि कारी इकबाल एक मौलवी जैसे दिखते थे, उन्हें आतंकी बताकर टीवी स्क्रीन पर सनसनी फैलाई गई। क्या अब मुसलमानों की पहचान ही शक की वजह बन चुकी है?
स्थानीय जनता और छात्रों में आक्रोश
कारी इकबाल के छात्रों, सहकर्मियों और गांववालों ने उनके पक्ष में खुलकर बयान दिए। लोगों का कहना है कि वे एक नेकदिल शिक्षक थे, जो बच्चों को कुरआन और नैतिकता सिखाते थे। उनकी हत्या दुखद थी, लेकिन मीडिया का उन्हें बदनाम करना उससे भी बड़ा अपराध है।
मीडिया की जवाबदेही कब तय होगी?
यह कोई पहला मौका नहीं जब गोदी मीडिया ने बिना सबूत मुस्लिम चेहरों को ‘आतंकी’ बताकर TRP बटोरने की कोशिश की हो। लेकिन इस बार बात एक शहीद की है — एक ऐसा शिक्षक जो पाकिस्तान की गोलियों का शिकार हुआ, न कि किसी ऑपरेशन का हिस्सा।
निष्कर्ष: पत्रकारिता या प्रोपेगेंडा?
एक लोकतांत्रिक देश में मीडिया को चौथे स्तंभ की तरह देखा जाता है, लेकिन जब वही मीडिया झूठ फैलाए और मृतकों को बदनाम करे, तो यह लोकतंत्र नहीं, अंधकार की ओर बढ़ता भारत बन जाता है। कारी मोहम्मद इकबाल की मौत पर फैलाई गई झूठी खबरें न केवल पत्रकारिता की हत्या हैं, बल्कि एक समुदाय को अपमानित करने का शर्मनाक प्रयास भी हैं।
“सवाल पूछना बंद कीजिए, पहचान पर फैसला कीजिए — यही है आज की मीडिया का ‘नया भारत’।”