इश्क़ हो पाएगा नया पूछा, इक नजूमी से ज़ाइचा पूछा
इश्क़ हो पाएगा नया पूछा इक नजूमी से ज़ाइचा पूछा सुर्ख़ आंखों का माजरा पूछा फिर किया तुमने रतजगा पूछा
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इश्क़ हो पाएगा नया पूछा इक नजूमी से ज़ाइचा पूछा सुर्ख़ आंखों का माजरा पूछा फिर किया तुमने रतजगा पूछा
Read MoreGhazal, Urdu Shayri-मुरस्सा ग़ज़ल, डॉ मुजफ्फर हुसैन नादिर, बिलारी नज़र में कद्र जो मां बाप की नहीं होती ।
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