शायरी

GHAZAL: जो क़तरा थे मेरे वो अश्क़ तूफां होते जाते हैं -रौशन मनीष

मौका था , जे.ए. के. आर्ट एंड कल्चर के तत्वावधान में हुई उर्दू शे’री नशिस्त का जिसमें ग्वालियर शहर के कुछ नौजवान शायरों ने शिरकत की और अपने बेहतरीन कलाम पढ़े।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि शायर श्री सुधीर कुशवाह जी विशिष्ट अतिथि के रूप में जनाब रौशन मनीष और साथ मे वरिष्ठ शायर जनाब रामअवध विश्वकर्मा जी रहे और कार्यक्रम की निज़ामत की नज़ीर नज़र ने।
कार्यक्रम का आग़ाज़ दो सत्रों के रूप में हुआ । पहले सत्र का आरंभ श्री रामअवध विश्वकर्मा जी द्वारा ग़ज़ल की बारीकियों पर विस्तार से चर्चा के साथ हुआ , जिसके अंतर्गत शुद्ध और अशुद्ध काफ़ियों का चयन विषय पर विस्तार से बताया गया, जिसमें आज काफियों के दोष इक्फा, ईता आदि के बारे में विस्तार पूर्वक बताया गया, जिससे नए ग़ज़लकारों की लेखनी को धार मिल सके साथ ही नए लिखने वालों की जिज्ञासाओं को भी शान्त किया गया ।
दूसरा सत्र तरही और ग़ैर- तरही ग़ज़लों की खुशबू से महकता रहा इस बार का तरही मिसरा अकबर इलाहाबादी साहिब की ग़ज़ल से लिया गया था “वो मुझको दफ़्न करके अब पशेमाँ होते जाते हैं” रहा , जिस पर नौजवान शायरों ने अपनी अपनी काविशें की और बेहतरीन अशआर कहे।

पेश हैं आज की नशिस्त में पढ़े गए अशआर

सब पुराना लग रहा मुझको नया होते हुए
बारहा देखा नहीं ये मोजिज़ा होते हुए

जा रहे हो क्यूँ मज़ारों पर चढ़ाने चादरें
घर के पुरखे राम जैसे देवता होते हुए

तेरी आमद से वीराने गुलिस्ताँ होते जाते हैं
करिश्मा देख अहले बाग़ हैराँ होते जाते हैं

इसे देखो उसे देखो मुहब्बत में मज़े से हैं
मुहब्बत में हमीं तन्हा परेशां होते जाते हैं
राज़

ग़ज़ल के शेर जिन-जिन पर नुमायाँ होते जाते हैं
ग़ज़ल सुनकर मेरी वो लोग हैराँ होते जाते हैं

ये कैसा चाँद है हर रोज़ जिसका हुस्न बढ़ता है
सितारे देख कर ये खेल हैराँ होते जाते हैं

नए फैशन का मतलब है नया कुछ पैरहन पहनो
ये क्या फैशन है जिसमें लोग उर्यां होते जाते हैं
जितेंद्र तिवारी

उसकी बख़्शी हुई दौलत यूं न ज़ाया जाए
खेल ही खेल में बच्चों को पढ़ाया जाए।।

हम न तन्हाई के कायल हैं न ख़ामोशी के
क़हक़हा छेड़ के माहौल बनाया जाए।।
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इश्क़ के शहसवार थे हम तो
तेरे जैसों का प्यार थे हम तो

हम के जूड़े में फूल हों जैसे
कुल तिरा हरसिंगार थे हम तो
नज़ीर नज़र

मेरे दुश्मन भी जब मुझ पर मेहरबां होते जाते हैं
बुरे दिन भी मेरे तबऔर आसां होते जाते हैं।

दिलों की दूरियाँ होती हैं कम ज्यो ज्यों यहां त्यों त्यों
बदन बेशक हों दो लेकिन वो इक जां होते जाते है

खुशी होती नहीं आते हैं ग़म घर में हमारे जब
जो ग़म आते भी हैं कुछ दिन के मेहमां होते जाते हैं
दिनेश विकल

मैं जिन रस्तों पे चलता हूंँ वो आसाँ होते जाते हैं,
अदू जितने भी मेरे हैं वो हैराँ होते जाते हैं

बिना पानी के सूखे हैं नदी तालाब और जंगल
ये फसलें खेत सारे ही तो वीराँ होते जाते हैं.

हमारे देश के बच्चे तो कच्ची मिट्टी जैसे हैं,
उन्हें जितना भी गढ़ते हैं वो रख्शाँ होते जाते हैं.
राम लाल साहू ‘बेकस’

मुसलसल जीते जाते हैं, परेशां होते जाते हैं
हुई नाकामियों पर हम पशेमां होते जाते हैं

हुए जाते हैं वो अब आस्मां अब तक जो थे ज़र्रा
जो क़तरा थे मेरे वो अश्क़ तूफां होते जाते हैं
क़तरा थे मेरे वो अश्क़ तूफां होते जाते हैं
ग़ज़ल, रूबाई, तज़्मीनात, क़त्आ, नज़्म लिख लिखकर
हुए पैदा तो हिंदू थे मुसलमां होते जाते हैं
रौशन मनीष

तुम्हारी हरकतों से हम परेशां होते जाते हैं
फ़जीहत होती जाती है पशेमां होते जाते हैं

सितारे बन के जब रहबर दिखाते रास्ते हमको
सफर कितने भी मुश्किल हों वो आसां होते जाते है

रफूगर जितना करते हैं रफू उससे जियादा कुछ
न जाने चाक क्यों मेरे गरेबां होते जाते हैं
रामअवध विश्वकर्मा

आदमी का दिल बहुत ही तंग निकला
धर्म तक से भी सियासी रंग निकला

आपके रिश्ते पे था कितना भरोसा
आपके रिश्ते में कितना ज़ंग निकला

मारने वाले को कितना ढूंढते थे
मारने वाला हमारे संग निकला
सुधीर कुशवाह

कार्यक्रम में उपस्थित शायरों के साथ श्रोताओं ने भी कार्यक्रम का लुत्फ़ लिया

टीम
जे. ए. के. आर्ट एंड कल्चर फाउंडेशन

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